Sunday, 30 October 2011

में एक शब्द बनूँ  तो,
तुम उसका अर्थ बन जाओ .
में एक नदी बनूँ तो,
तुम सागर बन जाओ.
फूलों की खुशबू की तरह , 
मेरी बगिया की महक बन जाओ.
मेरे इस कोमल हृदय में,
तुम एक कमल बन जाओ.
में एक दुःख का कारक बनूँ तो,
तुम सुख का कारक बन जाओ.
में एक भटकी राहगीर बनूँ तो,
तुम पथपदर्शक  बन जाओ.
अपने ज्ञान रुपी प्रकाश से,
मेरे इस जीवन को प्रकाशित कर दो.
मेरे यहाँ आने के प्रयोजन को,
एक प्रमार्निकता दे दो, एक प्रमार्निकता दे दो.
.....कल्पना

No comments:

Post a Comment