अपनी कविताओं के बिखरे अक्षरों को
अभी समेटने की कोशिश मी लगी हूँ .
कोशिशों की सफलता पर मेरी
शाब्बाशी मिले या न मिले तेरी
इस मंच की गहराइयों से
उस ऊँचाई को छू सकूँ
मन मी एक दंभ लिए
उस कामयाबी की थाह पा सकूँ
बेईसाखी की तरह एक सहारा बनकर
एक हमसफ़र, एक शुभचिंतक बनकर
बस हाथ थामे रहना
हौंसला मेरा बढ़ाते रहना .......
...कल्पना