Sunday 30 October 2011


अपनी कविताओं  के बिखरे अक्षरों को
अभी समेटने की कोशिश मी  लगी हूँ .
कोशिशों की सफलता पर मेरी 
शाब्बाशी मिले या न मिले तेरी
इस मंच  की गहराइयों से
उस ऊँचाई को छू सकूँ
मन मी एक दंभ लिए
उस कामयाबी की थाह पा सकूँ
बेईसाखी की तरह एक सहारा बनकर
एक हमसफ़र, एक शुभचिंतक बनकर 
बस हाथ थामे रहना
हौंसला मेरा बढ़ाते रहना .......
...कल्पना
में एक शब्द बनूँ  तो,
तुम उसका अर्थ बन जाओ .
में एक नदी बनूँ तो,
तुम सागर बन जाओ.
फूलों की खुशबू की तरह , 
मेरी बगिया की महक बन जाओ.
मेरे इस कोमल हृदय में,
तुम एक कमल बन जाओ.
में एक दुःख का कारक बनूँ तो,
तुम सुख का कारक बन जाओ.
में एक भटकी राहगीर बनूँ तो,
तुम पथपदर्शक  बन जाओ.
अपने ज्ञान रुपी प्रकाश से,
मेरे इस जीवन को प्रकाशित कर दो.
मेरे यहाँ आने के प्रयोजन को,
एक प्रमार्निकता दे दो, एक प्रमार्निकता दे दो.
.....कल्पना

Sunday 23 October 2011

Atoot Prem


वाकई हम हिंदी से प्रेम करते है
फिर भी हिंदी के साथ अंग्रेजी का प्रयोग करते है
हिंदी एक धनी भाषा है
फिर भी हिंदी बोलने में हम गरीब समझते है
हिंदी भाषा सभी समझते है
फिर भी अंग्रेजी का प्रयोग करना अपनी शान समझते है
ये कैसा हिंदी के साथ न्याय है
फिर भी हिंदी भाषा के भक्त बने फिरते है
हिंदी है हम ! हिंदी है हम! हिंदी है हम!
फिर भी अपने भाषण के बाद थैंक्यू बोलते है
( कृपया हिंदी भाषा को न्याय दिलाये)
जय हिंद!