एक प्रश्न उठता है मन में बार बार
क्या राजनीति में कोई जादुई शक्ति है?
कि इंसान अपनी इंसानियत, नैतिकता, ईमानदारी
ये सब कर देता है एक किनारे अपने से...
फिर एक प्रश्न फिर उठता है मन में बार बार
कि अगर भविष्य में कभी ईश्वर ये मौका दे
तो क्या में भी इन सबको भुलाकर ,
अपनी अंतरात्मा को नही सुनूगी ....
फिर एक घिरणा का भाव उठता है मन में बार बार
ऐसी राजनीति को धिक्कार है
जो इंसान को उसकी इंसानियत भुला दे
जो इंसान की नेइतिकता को दांव पर लगा दे
फिर एक निष्कर्ष रूप मन में आता है बार बार
यदि हो देश के सच्चे नागरिक हम
तो निष्पक्ष और बिना पद के भी हम
देश सेवा ,समाज सेवा कर सकते है ...........द्वारा अपनी कल्पना .