Saturday 30 July 2011

बहुत जी लिया अपनी कल्पना के बिना 
अब और नहीं  जिया जाता इसके बिना

न जाने कितने दुःख सहे जीवन  में इसने 
न जाने कितना अपमान सहा लोगो का इसने

न मैंने कभी परवाह की इसकी जीवन में 
न कभी खोज खबर की इसकी जीवन में 

अब समय आ गया है साथ में रहने का 
अब इसके बारे में कुछ सोचने का 

नया जीवन शुरू करू संग इसके 
नया जोश , नयी उमंग के साथ इसके 





3 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .......

    ReplyDelete
  2. aati sunder panktiya.... bahut ache:)

    ReplyDelete
  3. "वाह, मनभावन आपका ब्लॉग और ये कविता! आपको आभार, कल्पना जी"

    ReplyDelete