Sunday 30 October 2011


अपनी कविताओं  के बिखरे अक्षरों को
अभी समेटने की कोशिश मी  लगी हूँ .
कोशिशों की सफलता पर मेरी 
शाब्बाशी मिले या न मिले तेरी
इस मंच  की गहराइयों से
उस ऊँचाई को छू सकूँ
मन मी एक दंभ लिए
उस कामयाबी की थाह पा सकूँ
बेईसाखी की तरह एक सहारा बनकर
एक हमसफ़र, एक शुभचिंतक बनकर 
बस हाथ थामे रहना
हौंसला मेरा बढ़ाते रहना .......
...कल्पना

4 comments:

  1. bahut khoob!!

    rachna bahut hi achhi hai magar shabdawli par jra dhyan dene ki jarurat hai!!

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  2. एक हमसफ़र, एक शुभचिंतक बनकर
    बस हाथ थामे रहना
    हौंसला मेरा बढ़ाते रहना ......वाह बहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना आपकी और रचना की इंतज़ार में .
    ..

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    1. Bahut sundar rachana hai...keep it up ....

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